‘‘यह मत सोचिए कि चूकि मसीयत के पास बाइबल है, तो सबकुछ ठीक-ठाक है। यह मत सोचिए कि चूकि मसीयत आज मसीह का प्रचार करती है, तो सबकुछ ठीक है। प्राचीन समयों में यहूदीधर्म के प्राचीनों के पास बाइबल थी, और उन्होंने भी मसीह के बारे में कुछ सिखाया। परन्तु मसीह खुद वहां था, और उन्होंने उसकी परवाह नहीं की।’’
हरेक विश्वासी को बुलाना मसीह के जीवित व्यक्ति के पास आना है, सभी धार्मिक रीतियों को और मृत सिद्धांतों को पीछे छोड़ना है। मसीह बनाम धर्म में विट्नेस ली सुसमाचारों में मसीह के जीवन पर विचार करते हैं। वचन और काम दोनों में, यीशु ने अपने दिनों के धर्मनिष्ठ लोगों को विस्मित कर दिया और यहां तक कि खेदित कर दिया। जब धर्म, राजनीति, और यहां तक कि पवित्रशास्त्रों की व्याख्या से संबन्धित सवालों से सामना हुआ, तो उसने उनके मृत ज्ञान के पूर्वाग्रह को उजागर कर दिया और लोगों को अपनी जीवित उपस्थिति सुस्पष्ट की। यहां तक कि आज भी धर्म, विशेषकर मसीहीधर्म का प्रभाव, मसीह, कलीसिया, उसकी देह के माध्यम से होने वाली अभिव्यक्ति को रोकता है। मसीह बनाम धर्म हमारे प्रभु की बुलाहट को उस सबकुछ से बाहर आने के लिए दोहराती है जो खुद मसीह नहीं है।
The calling of every believer is to come to the living person of Christ, leaving behind all religious forms and dead doctrines. In Christ vs. Religion Witness Lee examines the life of Christ in the Gospels. In both word and deed, Jesus astounded and even offended the religionists of His day. When confronted with questions related to religion, politics, and even the interpretation of the Scriptures, He exposed their preoccupation with dead knowledge and pointed people to His living presence.
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